राष्ट्र प्रेरणा सम्मान से सम्मानित: श्रमणी आर्यिका विविक्तश्री माताजी
मध्यप्रदेश की पावन नगरी सागर में श्रीमति सुनीता देवी और मुन्नालाल जैन के घर 22 फरवरी 1983 को जन्मी पुत्री वर्षा जैन ने 19 वर्ष की आयु में अध्यात्म का मार्ग अपनाया और साध्वी बनने का संकल्प लिया। बुन्देलखण्ड क्षेत्र की पहली दिगम्बर जैन साध्वी बनने का गौरव प्राप्त करते हुए, उन्होंने पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य गणाचार्य श्री विरागसागरजी महाराज से जिनदीक्षा ग्रहण की। इस पवित्र अनुष्ठान के पश्चात उन्हें श्रमणी आर्यिका विविक्तश्री माताजी नाम प्रदान किया गया, और उन्होंने वैराग्य के मार्ग पर चलने का दृढ़ निश्चय किया।
पूज्य माताजी की प्रेरणा से, वर्ष 2017 में झांसी के श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सांवलिया पार्श्वनाथ करगुंवाजी में एक विशेष यति सम्मेलन एवं युग प्रतिक्रमण का आयोजन किया गया। इस भव्य आयोजन में पूज्य गणाचार्य श्री विरागसागर जी सहित लगभग 300 साधु-साध्वियों ने हिस्सा लिया, जो कि धर्म प्रभावना का एक महान कार्य बना। यह आयोजन समाज और धर्म के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण का प्रतीक बना, जिससे अनगिनत लोग लाभान्वित हुए।
समाज और धर्म के प्रति उनकी अनवरत सेवा और प्रेरणादायी कार्यों के लिए 16 दिसंबर 2023 को श्रमणी आर्यिका विविक्तश्री माताजी को इंडिया प्राउड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स द्वारा ‘राष्ट्र प्रेरणा सम्मान’ से सम्मानित किया गया। उनके द्वारा किए गए धर्म प्रभावना और समाज कल्याण के कार्यों ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की है और उनके समर्पण को रिकॉर्ड में दर्ज कर, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनाया गया है।
इस सम्मान के माध्यम से श्रमणी आर्यिका विविक्तश्री माताजी ने न केवल समाज सेवा में योगदान दिया है, बल्कि समाज को धर्म के प्रति जागरूक करने का भी कार्य किया है।